राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने साफ किया, कहा- नहीं हूं मैं अगले राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल!

राष्ट्रपति चुनाव कुछ ही दिनों में होने वाले हैं। इसके लिए बीजेपी और कांग्रेस अपनी-अपनी तरफ से कमर कस चुकी हैं। इस लड़ाई में बीजेपी का पलड़ा भारी लग रहा है। अभी हर चुनाव में बीजेपी को भारी बहुमत से जीत मिल रही है, तो यह उम्मीद लगाई जा रही है कि राष्ट्रपति चुनाव में भी बीजेपी को ही जीत मिलेगी। हालांकि बीजेपी ने अभी यह साफ नहीं किया है कि राष्ट्रपति पद के लिए उसका उम्मीदवार कौन होगा।
वहीं दूसरी तरफ वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने यह साफ कर दिया है कि वह आने वाले राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे। राष्ट्रपति मुखर्जी ने बताया कि अब मेरे कार्यकाल को ठीक दो महीने बचे हुए हैं। 25 जुलाई को देश का नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करेगा। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि मैं उन सभी अधिकारियों को उनके मंत्रालय में वापस भेज रहा हूं, जिन्होंने मेरे कार्यकाल के दौरान मेरा साथ दिया।

कार्यक्रम के दौरान मौजूद रहे मीडिया कर्मी:

एक अधिकारी को वाणिज्य मंत्रालय तो दूसरे को विदेश मंत्रालय भेजा गया है। प्रणब मुखर्जी ने यह बातें एक चाय पार्टी के दौरान सामने रखीं। यह पार्टी वेणुगोपाल को नीदरलैंड में राजदूत नियुक्त किये जाने और भारत से विदा होने के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सचिव ओमिता पॉल ने दी थी। इस कार्यक्रम में मीडिया कर्मी भी उपस्थित रहे।

निर्णय लेने की प्रक्रिया में विमर्श और मतभेद है जरूरी:

आपको बता दें कि राजमणि अगले महीने नीदरलैंड में अपना कार्यभार ग्रहण करेंगे। मीडिया से मुखातिब होते हुए राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में विमर्श और मतभेद जरूरी है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एक तर्कसंगत भारतीय की हमेशा गुंजाइश होनी चाहिए ना कि एक असहिष्णु भारतीय की। रामनाथ गोयंका स्मृति समारोह में व्याख्यान देते हुए मुखर्जी ने कहा कि, “हमारा संविधान भारत के व्यापक विचार की रूपरेखा के दायरे में हमारे मतभेदों को जगह देने का साक्षी है।“

सरकार का विरोध करने वालों के लिए संवेदनशील होने की जरूरत:

उन्होंने भारत की विविधता पर बोलते हुए कहा कि भारत की संस्कृति, सामाजिक, भाषाई और जातीय भिन्नत ही भारतीय सभ्यता की आधारशिला है। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग सरकार के विरोध में बातें करते हैं, उनके सन्दर्भ में सरकार को संवेदनशील होने की जरूरत है। शायद यही वजह है कि सोशल मीडिया पर और न्यूज़ चैनलों पर सरकार और सरकार के इतर लोगों का उग्र और आक्रामक रूप देखने को मिलता है। जिसमें विरोधी विचारों को पूरा का पूरा नकार दिया जाता है।

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