नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें ?
नवजात शिशु की देखभाल शिशु के जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है। नए जन्मे बच्चे को बड़ी नाजुकता के साथ संभालना पड़ता है। बच्चे के
जन्म के बाद बच्चे को माँ का दूध सही तरीके से और पर्याप्त मात्रा में कैसे मिले , उसके पहनने के कपडे कैसे हो , उसका बार बार रोना , बार
बार नेपी गन्दा करना आदि बातों ध्यान रखना जरुरी होता है। इन बातों का अनुभव नहीं होने पर बहुत परेशानी हो सकती है। आइये देखें
नवजात शिशु की देखभाल कैसे करनी चाहिए।
नवजात शिशु के आने से परिवार में ख़ुशी का माहौल बन जाता है। परिवार में नए सदस्य का हर्षोल्लास से स्वागत होता है। बच्चे के जन्म के
साथ ही माता पिता का भी एक नया जन्म होता है। शिशु की देखभाल करके उसे स्वस्थ रखने की नई जिम्मेदारी माता पिता पर आ जाती है।
संयुक्त परिवार में दादी , नानी के अनुभव से शिशु की देखभाल बड़ी आसानी के साथ हो जाती है। उन्हें बच्चों के लिए घरेलु नुस्खों की अच्छी
जानकारी होती है । परिवार के सभी सदस्य मिल जुलकर बच्चे की देखभाल कर लेते है। बच्चा कब बड़ा हो जाता है नए माता पिता को पता
ही नहीं चलता। लेकिन एकल परिवार में नए नए बने माता पिता को बच्चे की देखभाल का बिल्कुल अनुभव नहीं होता।
जानिए नवजात शिशु की देखभाल सम्बन्धी महवपूर्ण बातें और अच्छे माता पिता होने का कर्त्तव्य निभाएं।
नवजात शिशु की देखभाल करने का तरीका
नवजात शिशु की देखभाल का सबसे पहला और जरुरी हिस्सा है कि उसे जन्म के तुरंत बाद बच्चों के डॉक्टर ( Pediatrician ) को दिखा
कर निश्चित कर लेना चाहिए कि बच्चा बिल्कुल ठीक है। विशेष कर जब बच्चा पेशाब ना करे , बच्चा बिल्कुल ना रोये , बच्चा बहुत अधिक वजन
का हो , या बहुत कम वजन हो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करके उसे सूचित करना चाहिए। बच्चे की स्किन पीली दिखाई दे तो पीलिया होने की
सम्भावना होती है। ऐसे में बच्चे को डॉक्टर की सलाह से हल्की धूप दिखाएँ।
जन्म लेने के बाद उसे माँ के दूध की जरुरत होती है । इसी से उसकी दुनिया से जुड़ाव की पहली शुरुआत होती है। नए जन्म लिए बच्चे को माँ
के स्तन से दूध पीना नहीं आता। उसे थोड़ा सिखाना पड़ता है। धीरज रखते हुए प्रयास करने से बच्चा दूध पीना सीख जाता है। माँ को स्तन से
निकलने वाला पहला गाढ़ा और पीला दूध शिशु को जरूर पिलाना चाहिए। इस पहले दूध को कोलेस्ट्रम कहते है। इससे बच्चे में रोग प्रतिरोधक
शक्ति का जबरदस्त विकास होता है। जिससे बच्चा स्वस्थ रहता है।
बच्चे को माँ का स्पर्श और साथ सोना उसे सुरक्षित महसूस कराता है क्योकि गर्भाशय में वह माँ के साथ का आदि हो जाता है। शिशु को बारी
बारी से दोनों स्तन से दूध पिलाना चाहिये। स्तन में दूध की कमी हो तो उसे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
स्तन में दूध बढ़ाने के घरेलु नुस्खे जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
दूध पिलाते समय शिशु को साँस लेने में परेशानी ना हो इसका ध्यान रखना चाहिए। स्तन को अंगुली से हल्का सा दबाकर शिशु के साँस लेने
लायक जगह बना देनी चाहिए। स्तन में दूध जरुरत से ज्यादा भर गया हो तो एक्स्ट्रा दूध निकाल देना चाहिये। अन्यथा स्तन स्तन में दर्द हो
सकता है।
नया शिशु बहुत नाजुक होता है उसे गोद में सावधानी से उठाना चाहिए। शिशु को उठाते वक्त एक हाथ गर्दन और सिर के नीचे जरूर होना
चाहिये। दूसरा हाथ कूल्हों के नीचे रखें। इस तरह उसके पूरे शरीर को सहारा देकर ही उठायें। शिशु की गर्दन बहुत कमजोर होती है , सिर
के वजन को नहीं सम्हाल पाती। अतः विशेष ध्यान रखें। बच्चे को सिर्फ हाथ पकड़ कर नहीं उठाना चाहिए।
नया जन्मा शिशु लगभग 18 घंटे सोता है। पर लगातार नहीं। वो बार बार जग जाता है। लेकिन परेशान या नाराज नहीं होना चाहिए। या तो
उसने गीला किया होगा। या उसे भूख लगी होगी। उसे हर दो घंटे में भूख लग जाती है। क्योकि उसका पेट बहुत छोटा है। कभी कभी
बच्चा आपकी गोद चाहता है या कुछ कम्फर्ट चाहता है। शिशु कभी कभी नींद में मुस्कराता है , तो कभी नींद में चौंक कर एकदम से रोने
लगता है। नींद में अचानक रोने लगे तो हल्के से उसकी छाती पर प्यार से हाथ रखें , उसे अच्छा लगेगा। ये सभी सामान्य है।
4 महीने तक का बच्चा 10 से 16 घंटे सोता है। बार बार नेपी गन्दा करता है। दूध पीता है। ये ही उसकी दिनचर्या होती है। शिशु महीने भर का
होने तक 10 -12 नेपी गंदे करता है। माता पिता को बच्चे के जन्म से पहले ही नेपी जैसी सभी चीजों की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। शिशु को
पहनाये जाने वाले कपड़े बहुत नर्म , हवादार , और आसानी से बदले जा सकने लायक होने चाहिये। जिस तरह हमें सर्दी या गर्मी लगती है उसे
भी लगेगी। इसलिए उसके लिए सर्दी या गर्मी से बचने का विशेष प्रबंध करना चाहिये।
नए जन्मे शिशु का सिर इतना कोमल होता है कि कभी कभी उसका सिर पीछे से चपटा हो जाता है। शिशु के सिर के नीचे तकिया कुछ इस
तरह लगाना चाहिये कि उसके सिर का शेप न बिगड़े। सिर के पीछे या तो एकदम नर्म छोटा तकिया होना चाहिए या शिशु के लिए
विशेष मिलने वाला तकिया लेना चाहिए।
शिशु को पता नहीं चलता की उसे कितना दूध पीना चाहिए। कभी कभी अधिक दूध पीने की वजह स शिशु दूध वापस निकाल दे तो घबराना
नहीं चाहिये। ये बहुत सामान्य है। अधिकतर शिशु ऐसा करते है। हो सके तो शिशु को दूध पिलाने के बाद उसे कंधे पर लेकर सीधा रखना
चाहिए ताकि पिया हुआ दूध नीचे उतर जाये और शिशु के पेट से गैस निकल जाये। दूध पिलाने का समय फिक्स कर लें। हर वक्त दूध पिलाते
रहना सही नहीं है। डेढ़ से दो घंटे का अंतर रखें।
शिशु को सभी टीके ( Vaccine ) वक्त से लगवा लेने चाहिये। टीके लगवाना बहुत आवश्यक होता है। इनसे वह बड़ा होने पर भी गम्भीर
बीमारियों से बचा रहता है। इसके लिए टीके का चार्ट बनवा लेना चाहिए जिसमे सभी टीकों के लगाए जाने की तारिख आदि याद से लिख
देनी चाहिए। साथ ही शिशु का प्रोग्रेस चार्ट भी बनवा लेना चाहिए। जिसमे उसका वजन आदि लिखने से वक्त के साथ शिशु का विकास
सही तरीके से हो रहा है या नहीं , पता चलता है।
शिशु के जन्म से सम्बंधित पेपर्स हॉस्पिटल से लेकर नगर निगम से उसका जन्म प्रमाण पत्र ( Birth Certificate ) तुरंत बनवा लेना चाहिए।
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